हनुमान जी के भक्तों पर दृष्टि क्यों नहीं डालते शनिदेव? यहाँ पढ़े पूरी कहानी

शनिदेव की दृष्टि “राजा को रंक” और “रंक को राजा” बना सकती है. यह वह देवता है जिनके नाम से मनुष्य तो छोड़िए असुर और दूसरे देवता भी खौफ खाते हैं. वैसे, अगर आप हनुमान जी के भक्त हैं तो आपको घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि शनिदेव चाहते हुए भी आपका बाल भी बांका नहीं कर सकते. तो आखिर क्या है इसके पीछे का धार्मिक कारण और क्यों शनिदेव कभी भी किसी हनुमान भक्त पर दृष्टि नहीं डालते. आइए इस बारे में विस्तार से जानते है…

Why does not Shanidev look at the devotees of Hanuman ji
Why does not Shanidev look at the devotees of Hanuman ji

हनुमान जी के भक्तों पर शनिदेव के परेशान न करने की हमारे धार्मिक ग्रंथो में 2 पौराणिक कथाएं मिलती हैं. आज हम एक पर विस्तार से बात करेंगे.

पढ़े पौराणिक कथा

इस कथा के अनुसार, एक बार हनुमान जी और शनिदेव के बीच युद्ध हुआ जिसमे हनुमान जी जीत गए. इसके बाद, शनिदेव का घमंड चूर- चूर हो गया. इस कथा के अनुसार, सुबह का समय था. भक्त हनुमान हर दिन की तरह भगवान श्री राम के ध्यान में डूबे हुए थे, वो राम- नाम जपने में इस कदर मग्न थे कि उन्हें न तो समुद्र की लहरों का शोर सुनाई दे रहा था और न ही आसमान में उड़ते पक्षियों की ध्वनि. हनुमान जी से कुछ ही दूरी पर सूर्यपुत्र शनि देव विचरण कर रहे थे और उनके दिमाग में यही चल रहा था कि अब किसकी कुंडली में जाकर बैठा जाए. उनकी वक्र दृष्टि ज्वार भाटे से लेकर गीली रेट पर जहां-जहां पड़ती, वहीं बालू सुख जाती. इससे उनका अहंकार और अधिक बढ़ रहा था.

कुछ ही देर में शनिदेव हनुमान जी के पास जा पहुंचे और उन्हें पुकारने लगे- अरे ओ वानर, शीघ्रता से आँखे खोलो. कहा- मै तुम्हारी कुंडली में विराजमान होने आ गया हूँ. मै सूर्यपुत्र शनि हूँ, और इस संसार में ऐसा कोई नहीं जो मेरा सामना कर सके. शानिदेव ने सोचा सोचा था कि उनका नाम सुनते ही हनुमान कांपते हुए उनके चरणों में गिर जाएंगे और उनसे क्षमा याचना करने लगेंगे. लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि भगवान हनुमान ने धीरे- धीरे और निडरता से अपने आंखें खोली. फिर शनिदेव को देखते हुए कहा- महाराज आप कौन हैं और इस तप्ती बालू पर क्या कर रहे हैं? बताएं मैं आपकी किस प्रकार से सेवा कर सकता हूं.

हनुमान जी की बातें सुनकर शनि गुस्से से लाल- पीला हो गए और बोले- मूर्ख वानर, तु मुझे नहीं पहचानता; मैं शनिदेव हूं और तेरे दिन फिराने आने आया हूं. मैं तेरी राशि में प्रवेश करने वाला हूं. साहस है तो मुझे रोक लो. फिर हनुमान जी ने मुस्कुराते हुए कहा- महाराज आप तो बिना बात के ही क्रोधित हो रहे हैं, मैं ठहरा बूढा वानर और आप युवा सूर्यपुत्र, भला मैं आपको कैसे रोक सकता हूं. मैं तो आपसे विनम्रता से विनती ही कर सकता हूं, कृपा कर मुझे अकेला छोड़ दे. ताकि मैं श्री राम की आराधना कर सकूं.

पवन पुत्र के यह कहते ही शनि देव ने उनकी बाहं पकड़ ली और अपनी ओर खींचने लगे. हनुमान जी को लगा जैसे उनकी बाहं किसी ने दहकते अंगारों पर रख दी हो और एक झटके से उन्होंने अपनी बाहं शनि देव की पकड़ से छुड़ा ली. ये देख शनिदेव का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. जिसके बाद, उन्होंने हनुमान जी की दूसरी बाहं पकड़ने की कोशिश की. इससे हनुमान जी का धैर्य टूट गया और उन्हें भी क्रोध आ गया. फिर, भक्त हनुमान ने श्री राम का नाम लिया और शनिदेव की ओर अपनी पूँछ बढ़ानी शुरू कर दी.

कुछ ही देर में शनि देव हनुमान जी की पूँछ से लिपट गए. लेकिन, इसके बाद भी शनिदेव का अहंकार नहीं टूटा और उन्होंने कहा- तुम तो क्या तुम्हारे भगवान श्री राम भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते. अपने आराध्य श्री राम का नाम सुनते ही हनुमान जी का क्रोध और बढ़ गया. जिसके बाद, पूँछ में लिपटे शनिदेव के साथ समुद्र तट पर तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया.

उनकी लंबी पूछ कभी पहाड़ कभी कंटीली झाड़ियो से टकरा रही थी. कुछ ही देर में शनिदेव का हाल- बेहाल हो गया. उनके शरीर पर कई खरोंचे आ गई और उन्हें अपनी भूल का एहसास भी हो गया. लहूलुहान हुए शनि ने अपने पिता सूर्यदेव और सभी देवताओं को खूब आवाजे लगाई, लेकिन भला पवन पुत्र हनुमान के सामने कौन ही आता.

अंत में शनि देव, हनुमान जी से क्षमा याचना करने लगे और कहने लगे- वानर राज दया करो, मुझे अपनी उद्दंडता का फल मिल गया है. मेरे प्राण मत लीजिए, मैं वचन देता हूं कि भविष्य में आपकी छाया से भी दूर रहूंगा. इस पर हनुमान जी ने कहा- सिर्फ मेरे नहीं, बल्कि तुम मेरे भक्तों से भी दूर रहोगे अन्यथा मै फिर से दौड़ लगा सकता हूं. शनि देव टूट गए और उन्होंने हनुमान जी की बातें मान ली. यही कारण है कि जो भक्त हनुमान जी को मानते हैं. उनकी पूजा करते हैं. उनपर शनि देव कभी भी अपनी दृष्टि नहीं डालते.

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