जब भी भगवान श्री राम का नाम लिया जाता है, तो उनके साथ सदैव उनके महान भक्त हनुमान जी का नाम भी अवश्य लिया जाता है. हनुमान जी स्वयं भगवान शिव के ही अवतार थे. हनुमान जी एक महाबलशाली देवता थे जिन्हें हराना किसी के भी बस की बात नहीं थी. इन्हें भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा और भी कई देवों से इन्हें अलग- अलग तरह के वरदान मिले हुए हुए थे जिसके चलते इनकी शक्ति काफी बढ़ गई थी. भगवान हनुमान जी आज भी चिरंजीवी है, वह त्रेतायुग में स्वयं भगवान श्री राम के भी साथ थे और द्वापर युग में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के साथ भी थे.
महाभारत में एक नहीं बल्कि सैकड़ो बार हनुमान जी का जिक्र मिलता है, जहां एक बार खुद उन्होंने भीम का घमंड चकनाचूर किया, तो वहीं महाभारत के युद्ध में वह सर्वश्रेष्ठ धनुधारी अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजमान हुए. हम ये सब जानते हैं कि महाबली हनुमान जी ने कई प्रकार से द्वापर युग में अपनी उपस्थित जाहिर की थी. वो प्रत्यक्ष रूप से भले ही पांडवों से एक या दो बार मिले हो लेकिन वह अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा उनके साथ ही थे. जिनके साथ स्वयं भगवान श्री कृष्णा खड़े हो आखिर उनके पास भगवान हनुमान जी क्यों नहीं जाएंगे? क्योंकि भगवान श्री कृष्ण पहले श्री राम ही तो थे. वहीं, द्वारका में भी कई बार भगवान हनुमान का जिक्र मिलता है, जहां स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आमंत्रित किया था. वह भी सिर्फ और सिर्फ उनकी पत्नी सत्यभामा और सुदर्शन गरुड़, बलराम का घमंड चकनाचूर करने के लिए.
कहते हैं महाभारत के युद्ध के समय वो प्रत्यक्ष रूप से सबके सामने आए थे जहां पर स्वयं भगवान श्री कृष्ण के कहने पर और अर्जुन की विनती करने पर ही वो स्वयं उनके शक्तिशाली रथ के ध्वज में विराजमान हुए थे. इससे अर्जुन की शक्ति और भी कई अधिक गुना बढ़ गई थी क्योंकि इससे उनका रथ किसी भी साधारण या दिव्य शक्ति से चकनाचूर नहीं हो सकता था. लेकिन, महाभारत का युद्ध खत्म होने के पश्चात वो वापस अपने पुनः स्थान पर चले गए थे जहां वह सदैव भगवान श्री राम का जाप करते रहते थे. महाभारत का युद्ध अधर्म में धर्म की विजय का प्रतीक था.
जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने कूटनीति और अपने तपोबल के कारण अधर्मियों का नाश कर दिया था और धरती से सभी अधर्मियों को मिटा दिया था. जिसके बाद उन्होंने अंत में अपना शरीर त्याग कर वैकुंठ धाम की तरफ प्रस्थान करने का निश्चय किया और महाभारत खत्म होने के 36 वर्ष बाद स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपना देह त्यागा. इसके पीछे भी पूर्व जन्म त्रेतायुग के समय का वो श्राप मौजूद था जो स्वयं बाली की पत्नी ने उन्हें दिया था और वो बाली ही था जो एक शिकारी के रूप में आकर भगवान श्री कृष्णा के पैर पर उन्हें मृग समझकर वार कर देता है. वह एक बाण छोड़ देता है जिसकी वजह से स्वयं भगवान श्री कृष्ण को अपना दहेज त्यागना पड़ा था.
हनुमान जी भगवान श्री कृष्णा को रोकने क्यों नहीं आए?
जब स्वयं हनुमान जी को यह पता चला कि उनके आराध्या भगवान स्वयं इस धरती को छोड़ने वाले हैं और वह वैकुंठ धाम की तरफ प्रस्थान करने वाले हैं. हनुमान जी भली- भांति जानते थे कि भगवान श्री कृष्ण कौन है और इसके साथ ही हनुमान जी में भक्ति और साधना की शक्ति इतनी प्रबल थी कि वह सांसारिक मोहमाया दुख और सुख से भी परे थे इसीलिए वो ये सब बात भली- भांति जानते थे कि भगवान श्रीकृष्ण किस प्रकार इस धरती पर आए हैं और किस प्रकार प्रयोजन पूर्ण करकर वो इस धरती से जा रहे हैं.
ऐसा ही संदर्भ हमें त्रेतायुग में रामायण के दौरान भी मिलता है जब स्वयं हनुमान जी के डर के कारण श्री राम को अपने अंगूठी पाताल लोक में गिरानी पड़ी क्योंकि वो जानते थे कि हनुमान जी ने उन्हें वैकुंठ धाम जाने ही नहीं देंगे. जिसके बाद, वासु की नाक की सहायता से उन्हें श्री राम की हजारों अंगूठियां के बारे में पता चला.
क्या सचमुच हनुमान जी भगवान श्री कृष्णा से मिलने आए थे?
हनुमान जी भगवान श्री कृष्णा से मिलने नहीं आए थे. हनुमान जी सदैव भगवान श्री राम का निरंतर जाप करते रहते हैं. उनके मन में केवल श्री राम ही मौजूद है. उनको ये ज्ञात था कि श्री रामचंद्र ना तो कहीं जाते हैं और ना ही कहीं से आते हैं वो तो हमेशा से ही उनके हृदय में वास करते हैं. इसीलिए भगवान श्री कृष्ण के प्रस्थान करते समय ना ही हनुमान जी दुखी थे और ना ही उनके आंखों से आंसू निकाल रहे थे.
मिलने की बात पर ऐसा कहा जाता है कि स्वयं हनुमान जी प्रभु श्रीराम के अथवा श्रीकृष्ण के परम भक्त कहलाते हैं. इसीलिए भगवान के बीच आंतरिक मन से यानी आंतरिक तरंग से हमेशा मिलान होता रहता है. इस प्रकार से कहा जा सकता है कि स्वयं श्रीकृष्ण और हनुमान जी अपने अंतरमन से हमेशा एक साथ ही रहते हैं और हनुमान जी हमेशा अपने भगवान के ध्यान में लगे रहते हैं. इस प्रकार से भगवान स्वयं हनुमान जी के साथ उनके अंतरमन में विराजमान रहते हैं.