हनुमान जी और श्री गणेश का युद्ध, यहाँ पढ़े किस कारण हुआ भयंकर युद्ध

Hanuman or Ganesh Ka Yudh | पुराणों की कुछ कथाएं ऐसी होती हैं जिसके बारे में बहुत लोगों को जानकारियां नहीं है. साथ ही, कुछ कथाओं में बहुत ही विरोधाभास भी है और आज जिस कथा का वर्णन हम करने वाले हैं वो भी कुछ ऐसी ही है. यह कथा है उस घटना कि जब 2 महा शक्तियां यानी भगवान श्री गणेश और महावीर हनुमान जी आपस में टकरा गए थे. दोनों ही महादेव से जुड़े हुए थे क्योंकि एक तरफ थे महादेव के शक्तिशाली पुत्र यानी श्री गणेश और दूसरी तरफ महादेव के अंश अवतार यानी हनुमान जी. इस कथा का वर्णन हमें शिव पुराण और लिंग पुराण दोनों में ही मिलता है.

Hanuman or Ganesh Ka Yudh
Hanuman or Ganesh Ka Yudh

बता दें कि कुछ- कुछ संस्करणों में इसके बारे में विरोधाभास भी हमें देखने को मिलता है. इसका कारण है इस कथा के पात्र गजासुर. पुराणों में कई गजासुर का वर्णन किया गया है. उनमें से पहला तो वो है जिसके चर्म को महादेव ने धारण किया, एक वो है जिसके विषय में हम इस कथा में बात करने वाले हैं, एक गजासुर वो है जिसका मस्तक श्री गणेश के धड़ पर लगाया हुआ है, एक गजासुर वो भी है जिसे श्री गणेश ने मूषक के रूप में अपना वाहन बनाया हुआ है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, गजासुर एक असुर था जो कि महिषासुर का पुत्र था. जब माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया तब वह अपनी माता के गर्भ में था. जब उनका जन्म हुआ तो उसने अपनी माता से अपने पिता की मृत्यु का कारण पुछा. तब उसकी माता ने बताया कि किस प्रकार माता पार्वती ने देवी दुर्गा के रूप में प्रकट होकर उसके पिता का वध किया. यह सुनकर गजासुर अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने यह प्रतिज्ञा ली कि जिस प्रकार माता पार्वती ने उसे अनाथ किया, वह भी उनके पुत्र गणेश का वध कर उन्हें दुख देगा. किंतु श्री गणेश का वध किस प्रकार किया जा सकता था यह सोचकर उसने परमपिता ब्रह्मा की कई युगों तक तपस्या की.

ब्रह्मदेव के प्रसन्न होने पर उसने उनसे अमरता का वरदान मांगा. जिसे देने से ब्रह्मा जी ने मना कर दिया. तब उसने सोचा कि सृष्टि में केवल काम ही है जो सर्वत्र व्याप है. यही सोचकर उसने ब्रह्मदेव से यह वरदान मांगा कि उसका वध केवल उसी के हाथो हो सके जिसने काम को जीत लिया हो. ब्रह्मा जी ने उसे ये वरदान दे दिया और अंतर्ध्यान हो गए. वरदान मिलने के बाद वो निरंकुश हो गया और सृष्टि में उत्पात मचाना उसने शुरू कर दिया.

इतने बल के बाद श्री गणेश को परास्त करना उसके लिए भी संभव नहीं था. इसी कारण उसने राम भक्त का स्वांग रचा और महाबली हनुमान जी की तपस्या शुरू कर दी. जब महाबली ने देखा कि उन्हीं के समान एक राम भक्त उनकी तपस्या कर रहा है तो उन्होंने गजासुर को दर्शन दिए. गजासुर ने उनसे वरदान का वचन लेकर कहा कि शिव पुत्र गणेश, राम की हमेशा अवहेलना करते है. मै चाहता हूँ कि आप उनसे युद्ध कर उन्हें मृत्यु दंड दे. हनुमान जी वचनबद्ध थे इसलिए वह श्री गणेश से युद्ध के लिए चल पड़े. मार्ग में उनकी भेट देव ऋषि नारद से हुई. उन्होंने देवऋषि नारद से पूछा कि क्या वास्तव में गणेश जी राम द्रोही हैं. देव ऋषि स्वयं चाहते थे कि गजासुर का विनाश शीघ्र ही हो, यही सोचकर उन्होंने झूठ तो नहीं बोला पर बात बदलकर कहा कि गणेश तो सदैव शिव भक्ति में लीन रहते हैं. श्री राम का स्मरण करते हुए तो मैंने कभी उन्हें नहीं सुना.

देव ऋषि से ऐसा सुनकर हनुमान जी उसे सत्य मानकर कैलाश पहुंचे और श्री गणेश को ललकारा. उधर देव ऋषि तत्काल ही माता पार्वती के पास गए और उन्होंने सूचित किया कि महाबली हनुमान विघ्नहर्ता गणेश जी से युद्ध करने के लिए कैलाश पर पहुंच गए हैं. यह सुनकर माता तत्काल ही महादेव के साथ उस युद्ध को रोकने चल दी. उसी समय, गजासुर ने उनका मार्ग रोका और हंसते हुए कहा- हे देवी! जिस प्रकार तुम्हारे कारण मैं अपने पिता के लिए तड़पा हूं तुम भी आज अपने पुत्र के लिए तड़पोगी. यह देखकर उसका अंत समय जानकर महादेव उसके वत को प्रस्तुत हुए, उधर हनुमान जी अपने पंचमुखी स्वरूप के साथ श्री गणेश से युद्ध करने लगे.

दोनों रुद्र के ही अंश थे और दोनों की शक्ति की कोई सीमा नहीं थी. दोनों अनेक प्रकार के दिव्यास्त्र से एक- दूसरे पर प्रहार करने लगे. किंतु उसका कोई भी परिणाम नहीं निकला. वे दोनों ऐसे देवता थे जिन्हें बचपन से ही अनेकों देवताओं से कई वरदान मिले थे. दोनों के बीच युद्ध बहुत देर तक चलता रहा, किंतु कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था. वहीं, युद्ध को अधिक खींचता देखकर श्री गणेश ने अपना अमोग अंकुश हनुमान जी पर चलाया. पवन पुत्र ने अपने अमोक गदा को उसके प्रतिकार के लिए चलाया. जब दोनों दिव्यास्त्र टकराए तो सृष्टि पूरी तरह से हिल गई. उस समय श्री गणेश ने अपनी सूंड से हनुमान जी को और पवन पुत्र जी ने अपनी पूँछ से विघ्नहरता को इस प्रकार जकड़ लिया कि जैसे कि दोनों युद्ध लड़ने में असमर्थ हो गए हो. उधर गजासुर काल के वश में आकर महादेव से टकराया.

सृष्टि में महादेव ही ऐसे थे जिन्होंने काम को जीता हुआ था. यही ब्रह्मा जी का वरदान भी था और असुर का अंत समय निकट आया देखकर महादेव ने तक्षण अपने त्रिशूल से गजासुर का मस्तक काट लिया. इस प्रकार उस अन्याय असुर का अंत हुआ. तब शिव शक्ति तत्काल उस स्थान पर पहुंचे जहां पर श्री गणेश और हनुमान जी एक दूसरे को जकड़े विवश खड़े थे. महादेव ने उन दोनों को मुक्त किया और समझा बुझाकर उस युद्ध को रुकवाया. तब माता पार्वती ने हनुमान जी को गजासुर के विषय में बताया. यह भी बताया कि वो असुर महादेव के हाथो मारा जा चूका है. माता ने कहा कि राम और शंकर में कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं, जो दोनों को अलग समझता है उन्हें किसी की भी भक्ति प्राप्त नहीं होती.

तत्पश्चात माता के आग्रह पर महादेव ने हनुमान जी को अपना वही स्वरूप दिखाया जिस स्वरूप में श्री राम ने उन्हें रामेश्वर में स्थापित किया था. उस स्वरूप में हनुमान जी ने उस ज्योतिर्लिंग में महादेव और श्री राम दोनों के दर्शन प्राप्त किए. तब श्री गणेश और बजरंग बली ने हरिहर स्वरूप और ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया. गजासुर की कथा हमें शिव पुराण और लिंग पुराण दोनों में मिलती है हालांकि, कई लोग हनुमान जी और श्री गणेश के इस युद्ध को शेप मानते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण गजासुर और हनुमान जी के बीच का कालखंड है. दोनों के कालखंड में बहुत बड़ा अंतर है जहां गजासूर सतयुग में जन्मा, वहीं हनुमान जी त्रेता युग में अवतरित हुए. इसी कारण गजासुर द्वारा हनुमान जी की तपस्या करने को अधिकतर लोग क्षेपक मानते हैं, इसके अतिरिक्त, इन दोनों के युद्ध का स्पष्ट वर्णन हमें शिव पुराण में नहीं मिलता बल्कि लिंग पुराण में बारीकी से मिलता है. इन सबके बाद भी यह कथा लोककथा के रूप में जनमानस में बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है.

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